*मालिक जाने!*
फूल तो बस खुशबू जाने है।
हर मजहब को अपना माने है।
रंगत उसकी सबमें खिलती है।
सेहरा में सजे या हार बने।
मंदिर-मस्जीद दोनों को महकाए
कब मजहब बीच दीवार बने।
इंसा कब ये समझेगा?मालिक जाने।
गाय तो अमृत देती है।
मां जैसी बच्चों का पालन करती है।
वो मजहब का भेद क्या जाने।
कौन हिन्दू?कौन मुसलमां?
दूध उसकी हर खुशी में शामिल
चाहे खीर बने या सेवईयां!
कब दोनों ये समझेंगे?मालिक जाने!
राधा सलमा एक घाट नहाते
सुख-दुख के सब किस्से बतियाते।
राम-रहीम संग स्कूल जाते
आधी रोटी मिल बांट के खाते।
फिर आखिर किस बात पर?
दोनों के कदम बहकते है।
मालिक जाने!!!
*रीझे-टेंगनाबासा*